देवमणि पांडेय: ग़ज़ल के ताज़ाकार शायर
-ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल अपनी बेइंतिहा म़कबूलियत की बिना पर तमाम लस्सानी हदबंदियों (Lingustic Barrier) को
तोड़कर उर्दू के अलावा दूसरी ज़बानों तक पहुँच गई है और फ़ी-ज़माना ये सबकी पसंदीदा सिंफ़े-सुख़न
1 बन गई है। हिंदी,मराठी और गुजराती
वग़ैरह में ख़ास तौर पर ग़ज़ल ने अपना जादू जगा रखा है। बिल ख़ुसूस 2 हिंदी में
ख़ूब ग़ज़लें कहीं जा रही हैं। हालांकि हिंदी में उसे अभी वो इस्तेहकाम 3 नहीं मिला
है जो मिलना चाहिए। ताहम ग़ज़ल के रसिया शायरों का तख़लीक़ी 4 अमल जारी है
और ये इतमीनान की बात है।
देवमणि पांडेय नए और ताज़ादम ग़ज़लगो हैं। उनका कलाम पढ़कर मुझे उनकी सलाहियतों
5 का कायल होना पड़ा। उनकी ग़ज़लें आम हिंदी ग़ज़लों से हर सतह पर बड़ी हद तक
मुख़्तलिफ़ हैं। उन्होंने अपनी ग़ज़ल की बुनत और और तख़लीक़ी रवैयों में उर्दू से इस्तिफ़ादा
6 किया है। वो नई नस्ल के ग़ज़लकारों में ऐसे नौजवान ग़ज़लकार
हैं जिन्होंने हिंदी और उर्दू के अटूट रिश्ते से फ़ैज़ उठाया है और बेशक ये एक मुबारक
अमल है। ज़ैल 7 के अशआर देखें -
इस जहाँ में प्यार महके ज़िदगी बाक़ी रहे
ये दुआ माँगो दिलों में रोशनी बाक़ी रहे
दिल में मेरे पल रही है ये तमन्ना आज भी
इक समंदर पी चुकूं और तिश्नगी बाक़ी रहे
आदमी पूरा हुआ तो देवता हो जाएगा
ये ज़रूरी है कि उसमें कुछ कमी बाक़ी रहे
चित्र- में : (बाएं से दाएं)- संचालक प्रज्ञा
विकास, शायर देवमणि पांडेय, शायर ज़फ़र गोरखपुरी,
लोक गायिका डॉ. शैलेश श्रीवास्तव, शायरा
दीप्ति मिश्र, कवयित्री माया गोविंद
दर्दमंदी, एहसासे-हुस्न, जज़्बे की सदाक़त और मुस्बत तर्ज़े-फ़िके, 8 ये वो तसव्वुरात हैं जिनमें देवमणि पांडेय के कलाम की जड़ें
पैबस्त हैं। लेकिन इन जड़ों से निकलने वाले पौदों की शाखें दूर-दूर तक फैली हुई हैं और कहीं न कहीं ज़िदगी के आम मसाइल से हमकिनार हो जाती
हैं और ये बड़ी ख़ूबी की बात है। मेरी नज़र में अच्छी शायरी वो है जो अपने क़ारी 9 के ज़ौक़ पर
पूरी उतरे, उसे ज़हनी सुकून और रूहानी मसर्रत अता करे। जो क़ारी
को मायूस न करे बल्कि उसमें ज़िदगी से लड़ने का हौसला पैदा करे। मुझे ख़ुशी है कि देवमणि
पांडेय की ग़ज़ल में ये औसाफ़ 10 मौजूद हैं -
तनहाई की क़ैद से ख़ुद को रिहा करो, बाहर निकलो
हो सकता है भर दे कोई दिल का ज़ख़्म पुराना भी
मुमकिन हो तो खिड़की से ही रोशन कर लो घर-आँगन
इतने चाँद सितारे लेकर फिर आएगी रात कहाँ
दुनिया
जिनके फ़न को अक्सर अनदेखा कर देती है
वे
ही इस दुनिया को रौशन कर जाते हैं कभी कभी
इस
दुनिया की भीड़ में अकसर चेहरे गुम हो जाते हैं
रखनी
है पहचान तो अपना चेहरा अपने पास रहे
लबों
से मुस्कराहट छिन गई है
ये है अंजाम अपनी सादगी का
कितने फ़नकारों ने अब तक जज़्बों को अल्फ़ाज़ दिए
अपने ग़म का सरमाया ही शायर की पहचान हुआ
एक और चीज़ और जिसका ख़याल देवमणि पांडेय ने अपनी ग़ज़लों में रखा है वो है मौसीक़ियत की मध्दम-मध्दम लहरें, जिन्होंने उनकी ग़ज़लों
को इस क़ाबिल बना दिया है कि क़ारी उसे किताब में पढ़े या साज़ो-आवाज़ के ज़रिए
सुने वो पूरी तरह लुत्फ़ंदोज़ होगा। ये ग़ज़लें नए रंगो-आहँग,
नए लबो-लहजे की ग़ज़लें हैं जो बेशक़ ग़ज़ल के शायक़ीन
11 को ख़्वाह 12
वो हिंदी के हों या उर्दू
के हों, मुतवज्जेह 13 करेंगी। मेरी दुआ है कि देवमणि
पांडेय का ये शेरी मजमुआ हिंदी और उर्दू दोनोम ज़बानों में मक़बूल हो।
नेक ख़्वाहिशात के साथ-
ज़फ़र
गोरखपुरी
1.शायरी की विधा, 2.ख़ास तौर पर,
3.मज़बूती, 4.रचनात्मक, 5.योग्यता, 6.लाभ, 7.निम्नलिखित,
8.साकारात्मक सोच, 9.पाठक, 10.ख़ूबियाँ, 11.पसंद करने वाले, 12,चाहे, 13.आकर्षित
सम्पर्क : ज़फ़र
गोरखपुरी : ए-302, फ्लोरिडा, शास्त्री नगर, अंधेरी (पश्चिम),
मुम्बई – 400 053,
फोन : 022 – 2636 9313 . मो. 098337-52164
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