इस
संग्रह में हमें राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक विडंबनाओं,मानवीय संवेदनाओं, समस्याओं के मंज़र शब्दों के बीच से झाँकते मिलेंगे। दुनिया की मामलेदारियों की सँकरी गलियों से सफ़र करते हुए वे कहते हैं-
इस दुनिया की
भीड़ में अक्सर चेहरे गुम हो जाते हैं
रखनी
है पहचान तो अपना चेहरा अपने पास रहे
जख्म़ी
हुआ है झूठ का चेहरा कई दफ़ा
चेहरे
पे सच के हमको ख़राशें नहीं मिली
और
साथ में हौसले को बरकरार रखने के लिये भी चेतना को जागृत करते हुए लिखते हैं---
करें
कोशिश अगर मिलकर तो नामुमकिन नहीं कुछ भी
पलट
जाता है तख़्ता ज़ुल्म का
अक्सर बग़ावत में
आशा-निराशा के झुरमटों के
बीच,संघर्ष की जद्दो-जहद और संवेदना के
संचार से ही आदमी के
अंदर की दुनिया बाहर की
दुनिया से जुड़ती है। ऐसे हालात को देखिये कि किस तरह वे सादगी से
सजा रहे हैं----
तूने
अपना चैन गँवाया मेरी नींद उड़ा दी है
दिल
के इस नाज़ुक रिश्ते में दोनों का नुक़सान हुआ
आज
की कृत्रिम दुनिया में जहाँ हर जगह समझौते किये जाते है, जहाँ सच का गला घोंटा जा रहा है, जहाँ दिल और
दिमाग़ में तक़रार बना रहता है वहीं देवमणि जी जीवन की
विसंगतियों के सामने हथियार न डालकर उस नन्हें दीपक से प्रेरणा लेते हैं जो घनघोर अंधकार से भी पराजय नहीं मानता---
ख़ुद
को रोशन करने का भी
अपना है अंदाज़ अलग
हम सूरज के
साथ निकलते मगर रात भर
जलते हैं
शायर ने दुनिया के
यथार्थ को बख़ूबी उकेरा है। उनके कथन में जीवन के अनुभवों का निचोड़ है। अपनी सोच और
सलाहियत के बलबूते पर उन्होंने ज़िन्दगी के हर
पहलू- समाज, साहित्य व संस्कृति के विभन्न आयाम उजागर किये हैं। रचनाओं का सृजन बोल-चाल की भाषा में आम आदमी के दिल पे
दस्तक देने में सक्षम है। नये विचारों को
नये अंदाज़ में केवल दो
पंक्तियों में बाँधना तो दरिया को
कूजे में भरने जैसा दुष्कर काम है देवमणि जी
ने अपनी साहित्यिक निष्ठा से
यह पड़ाव भी बख़ूबी पार किया है-
दुख और ग़म के बीच
जिंदगी कितनी प्यारी लगती है
जैसे कोई फूल खिला हो काँटों की निगरानी
में
मुझे पूरा यक़ीन है
कि यह ग़ज़ल संग्रह 'अपना तो मिले कोई' सुधी पाठकों और अदब की दुनिया में देवमणि पांडेय जी का
शिनाख़्तनामा साबित होगा। आने वाले वक़्त में इनसे उम्मीदें हैं कुछ और
भी.…..
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक : देवी
नागरानी
9-डी, कॉरनर व्यू, रोड नं.15/33, बांद्रा (प), मुम्बई
-400050, फोन :
099879-28358, dnangrani@gmail.com
ग़ज़ल संग्रह : अपना तो मिले कोई , शायर : देवमणि पाण्डेय, क़ीमत : 150 रूपए
प्रकाशक : अमृत प्रकाशन, 1/5170, बलबीर,
गली नं.8, शाहदरा, दिल्ली-110032,
फोन : 099680-60733
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