Thursday, May 3, 2012

अपना तो मिले कोई : समीक्षा - अंसार क़म्बरी




अपना तो मिले कोई : समीक्षा - अंसार क़म्बरी
सभी कुछ मिलेगा इसी ज़िंदगी में


आपका निहायत ही सलीक़े और नये अंदाज़ के साथ प्रकाशित देवमणि पाण्डेय का ग़ज़ल संग्रह 'अपना तो मिले कोई' प्राप्त कर हार्दिक प्रसन्नता हुई । जनाब ज़फ़र गोरखपुरी व जनाब अब्दुल अहद 'साज़' साहब ने संक्षिप्त किंतु सागर से भी गहरी प्रस्तुति द्वारा देवमणि पाण्डेय की शाइरी पर जिस तरह प्रकाश डाला है फिर उसके बाद कुछ कहने की गुंजाइश नहीं बचती, उन महानुभावों को सलाम ! 

मैं इतना ज़रुर कहूँगा कि यदि संग्रहित ग़ज़लों को देवनागरी के स्थान पर उर्दू रस्मुलख़त में प्रकाशित किया जाता तो कोई भी यह नहीं कहता कि यह ग़ज़लें हिन्दी के किसी ग़ज़लगो कवि की हैं। देवमणि पाण्डेय ने इसे देवनागरी में प्रकाशित करवा कर उन कवियों पर एहसान किया हैं जो ग़ज़लें कहने की कोशिश कर रहे हैं। 

आमतौर पर हिन्दी में ग़ज़ल कहने वालों में ग़ज़ल की नज़ाकत, नफ़ासत, इशारे, कनाए, गुरेज़, रियायतें व अल्फ़ाज़ की नशिस्त आदि देखने को कम मिलती हैं। मैं यह नहीं कह रहा कि सभी ऐसे हैं, उनमें कुछ बहुत अच्छा कहने वाले भी हैं जिनमें एक नाम देवमणि पाण्डेय का भी जुड़ गया है। बधाई स्वीकारें ! 

संग्रह में सभी ग़ज़लों में एक से बढ़ कर एक अशआर हैं किन्तु बानगी के तौर पर कुछ अशआर देने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूँ :

ख़ुशबू मेरी निगाह  की तुझसे लिपट गई
क्या बात है कि दिल तेरा संदल नहीं हुआ

छोड़ दिया है साथ सभी ने
लेकिन अब आराम बहुत है

आँगन में नीम, शाख़ पे चिड़ियों का घोंसला
जो खो दिया है तूने वही घर तलाश कर

बच्चों के हाथों में जबसे ये मोबाइल आया है
बहते पानी में काग़ज़ की नाव चलाना भूल गये

बदले में मिले नेकी के नेकी ही सभी को
दीवाने ! ज़माने का ये दस्तूर नहीं है

हर इक ज़बाँ पे है तारी अजब सी ख़ामोशी
हर इक नज़र में मगर अनगिनत बयान मिले

अपना तो ये दीन-धरम है साथ इसी के जीना है
प्यार छुपा है जिस दिल में वो काशी और मदीना है

ये चाँद और सितारे मुझे मिलें न मिलें
बहुत है मेरे लिये दिल की रौशनी यारो


शायर देवमणि पांडेय 
 
बस नाम ही सुना है मुहब्बत का दोस्तो
अब तक हमारी इससे निगाहें नहीं मिलीं

यहीं पर हैं ग़म और यहीं पर हैं ख़ुशियाँ
सभी कुछ मिलेगा इसी ज़िंदगी में

मैं हूँ क्या, वो भी जान जाएगा
आँख मुझसे कभी मिलाए तो

कितना हसीन है तू, तुझको पता नहीं है
लगता है तेरे घर में कोई आईना नहीं है

सोता था जो सड़कों पर
अब वो ऊँची हस्ती है

तू जो नहीं तो याद है तेरी
कोई तो है दोस्त हमारा

दुनिया जिनके फ़न को अक्सर अनदेखा कर देती है
वो ही इस दुनिया को रौशन कर जाते हैं कभी-कभी

ऐसे न जाने कितने अशआर संग्रह में हैं जो पाठकों के दिलों को झंकृत कर देगें। सच - देवमणि जी आपका ग़ज़ल संग्रह 'अपना तो मिले कोई' हिन्दी ग़ज़ल के सोपान के ऊँचे पायदान पर अपना स्थान बनाएगा ऐसा मेरा विश्वास है । शेष शुभ ! ईश्वर से आपकी कुशलता एवं आगे भी आपके और ग़ज़ल संग्रह पढ़ने की अभिलाषा की कामना के साथ ---
आपका-
अंसार क़म्बरी : 'ज़फ़र मंज़िल', 11/116.ग्वालटोली, कानपुर - 208001
मो -9450938629.घर-9305757691

ग़ज़ल संग्रह : अपना तो मिले कोई , शायर : देवमणि पाण्डेय, क़ीमत : 150 रूपए
प्रकाशक : अमृत प्रकाशन, 1/5170, बलबीर, गली नं.8, शाहदरा, दिल्ली-110032, फोन : 099680-60733

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