शायर देवमणि पांडेय
बस नाम ही सुना है मुहब्बत
का दोस्तो
अब तक हमारी इससे निगाहें
नहीं मिलीं
यहीं पर हैं ग़म और यहीं
पर हैं ख़ुशियाँ
सभी कुछ मिलेगा इसी ज़िंदगी
में
मैं हूँ क्या, वो भी
जान जाएगा
आँख मुझसे कभी मिलाए
तो
कितना हसीन है तू, तुझको
पता नहीं है
लगता है तेरे घर में
कोई आईना नहीं है
सोता था जो सड़कों पर
अब वो ऊँची हस्ती है
तू जो नहीं तो याद है
तेरी
कोई तो है दोस्त हमारा
दुनिया जिनके फ़न को
अक्सर अनदेखा कर देती है
वो ही इस दुनिया को रौशन
कर जाते हैं कभी-कभी
ऐसे न जाने कितने अशआर
संग्रह में हैं जो पाठकों के दिलों को झंकृत कर देगें। सच - देवमणि जी आपका ग़ज़ल संग्रह
'अपना तो
मिले कोई' हिन्दी ग़ज़ल के सोपान के ऊँचे पायदान पर अपना स्थान बनाएगा ऐसा मेरा
विश्वास है । शेष शुभ ! ईश्वर से आपकी कुशलता एवं आगे भी आपके और ग़ज़ल संग्रह पढ़ने
की अभिलाषा की कामना के साथ ---
आपका-
अंसार क़म्बरी : 'ज़फ़र मंज़िल', 11/116.ग्वालटोली,
कानपुर - 208001
मो -9450938629.घर-9305757691
ग़ज़ल
संग्रह : अपना तो मिले कोई , शायर : देवमणि पाण्डेय, क़ीमत : 150 रूपए
प्रकाशक : अमृत
प्रकाशन, 1/5170, बलबीर, गली नं.8,
शाहदरा, दिल्ली-110032, फोन
: 099680-60733
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